भगवान और शैतान

 एक कहावत बहुत प्रचलित है - 'शैतान को याद करो और शैतान हाजिर।'सोचने वाली बात यह है, भगवान को याद करो और भगवान हाजिर।' यह कहावत क्यों नहीं बनी? तो क्या शैतान भगवान से अधिक शक्तिशाली और दयालु है? कदापि नहीं। मुझे लगता है, इस सूत्र में महत्व शैतान का की शक्ति का नहीं बल्कि हमारी सिद्दत का है। जिस शिद्दत से हम शैतान को याद करते हैं, क्या उतनी ही प्रबलता से हम भगवान को याद करते हैं ।यदि करें तो मुझे विश्वास है कि भगवान भी तत्काल उपस्थित हो जाएंगे, क्योंकि परमात्मा तो हाजिर है, ही वह सदैव वर्तमान है। होता यह है कि हम भगवान को याद ही तब करते हैं, जब हमें भगवान से भगवान नहीं, उनकी शक्ति चाहिए होती है। उनको याद करके हम उनसे शैतानों वाले काम करवाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि या तो वह हमें अपनी शक्ति दे दे जिससे हम सामने वाले का सर्वनाश कर सके यह वह हमें बचाते हुए खुद ही सामने वाले को मिटा दे। हम उनकी शक्ति के  सृजन के लिए नहीं संहार के लिए चाहते हैं,जिसके लिए भगवान राजी नहीं होते क्योंकि वह मिटाने में नहीं जमाने - बनाने में विश्वास करते हैं। हमें यह स्मरण रखना होगा कि वह भगवान है संतुलन में विश्वास करते हैं, वह युक्ति से नहीं भक्ति से प्रसन्न होते हैं।





                                                  आशुतोष राणा

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