दूरदर्शी

 एक आदमी सोना तोलने के लिए सुनार के पास तराजू मांगने आया। सुनार ने कहा ," मियां अपना रास्ता लो"। मेरे पास छलनी नहीं है।  उसने कहा," मजाक ना करो भाई" मुझे तराजू चाहिए।
सुनार ने कहा," मेरी दुकान में झाड़ू नहीं है।"
उसने कहा," मस्करी को छोड़ दे,मैं तराजू मांगने आया हूं वह दे दे और बहरा बनकर उटपटांग बातें न कर।"
सुनार ने जवाब दिया," हजरत मैंने तुम्हारी बात सुन ली थी,मैं बहरा नहीं हूं। तुम यह मत समझो कि मैं गोलमाल कर रहा हूं।  तुम बुढ़े आदमी सूखकर कांटा हो रहे हो, सारा शरीर कापता है। तुम्हारा सोना भी कुछ बुरादा है और कुछ चुरा है इसलिए तोलते समय तुम्हारा हाथ कापेगा और सोना गिर पड़ेगा तो तुम फिर आओगे कि भाई ,जरा झाड़ू तो देना ताकि मैं सोना इकट्ठा कर लुं और जब बहार कर मिट्टी और सोना इकट्ठा कर लोगे तो फिर कहोगे कि मुझे छलनी चाहिए ताकि खाक को सोना से अलग कर दुं । हमारी दुकान में छलनी कहां?
मैंने पहले ही तुम्हारे काम के अंतिम परिणाम को देख कर कहा था कि तुम किसी दूसरी जगह से तराजू मांग लो।"



[जो मनुष्य केवल काम के प्रारंभ को देखता है वह अंधा है। जो परिणाम को ध्यान में रख्के वह बुद्धिमान है ।जो मनुष्य आगे होने वाली बात को पहले से ही सोच लेता है उसे अंत में लज्जित नहीं होना पड़ता है]

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                   धन्यवाद

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