विवेकानंद का बचपन




स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। बालक नरेंद्र खेल खेल में अपने साथियों के साथ ध्यान लगाने बैठ जाते थे। नरेंद्र के साथ अन्य सभी मित्रों ने आसन लगाकर अपनी अपनी आंखें बंद कर ली। एक मित्र ने कुछ समय बाद ही अपनी आंखें खोल दी।उसने देखा कि एक भयानक सांप रेंगता हुआ उनकी ओर चला आ रहा है । वह जोर से चीख पड़ा     सांप सांप ! उसका चिखना था कि सभी लड़कों ने अपनी अपनी आंखें खोल दी। सांप देखा तो भाग गए पर नरेंद्र अपने स्थान से हिले तक नहीं। एक लड़के ने दौड़कर नरेंद्र के माता-पिता को खबर दी। नरेंद्र के माता-पिता ने जाकर देखा कि उनका बेटा अपनी जगह पर ध्यान मग्न है और सांप उसके सामने फन फैलाए हुए हैं।

 नरेंद्र के माता-पिता यह देखकर भयभीत हो गए। उन्हें चिंता होने लगी कि यदि वे सांप को छेड़ते हैं तो कहीं सांप क्रोधित होकर नरेंद्र को काट न ले। नरेंद्र के माता-पिता मन ही मन भगवान से नरेंद्र के लिए प्रार्थना करने लगे।  ईश्वर ने उनकी प्रार्थना सुन ली और सांप वहां से चला गया ।ऐसी एकाग्रता और आत्मबल वाले महान बालक थे नरेंद्र,जो आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से अमर हो गए।

 बालक नरेंद्र जब छुआछूत और  जाती पाती की बातें सुनते तो उन्हें दुख होता था। वह सोचते कि क्या एक दूसरे को छूने से लोगों की शक्ल बदल जाती है।

 बालक नरेंद्र के पिता वकील थे उनके मुवक्किल में सभी जाति व धर्म के लोग थे उनमें एक वकील बालक नरेंद्र को बहुत प्यार करता था। वह जब भी आता तो नरेंद्र के लिए रसगुल्ले लता था और वे उसे खा  जाते थे। इस बात को नरेंद्र के घर वाले पसंद नहीं करते थे। घरवालों की नाराजगी से नरेन्द् के मन में यह प्रश्न आता की क्यों लोग एक  दूसरे के हाथ का छुआ नहीं खाते?

 नरेंद्र के पिता की बैठक में कई हुक्के रखे रहते थे। नरेन्द्र के कोमल मस्तिष्क में हुक्कों को देख कर यह प्रश्न उठता था कि सबके लिए अलग-अलग हुक्के क्यों है ?क्या सब के स्वाद अलग-अलग हैं ? एक जाति का आदमी दूसरी जाति आदमी के हुक्के पी ले तो क्या उसकी सूरत बदल जाएगी ? एक दिन नरेंद्र ने स्वयं इसकी परीक्षा की। बैठक में जा कर एक एक करके सभी हुक्के पीने शुरू कर दिए । नरेंद्र के पिता ये सब देख कर पूछा " ये सब क्या कर रहे हो?"

 बालक  नरेंद्र ने बड़ी सरलता से उत्तर दिया "पिताजी", मैं इन हुक्कों का स्वाद और असर जनना चाहता था। मैने सभी हुक्कों को बारी बारी से पिया पर ना तो इसका स्वाद अलग है और ना ही मुझ में कोई परिवर्तन आया।" उनके पिता ने जब यह सुना तो बरबस उनके मुंह से निकला पता नहीं  बड़ा होने पर क्या बनेगा।

आगे  चलकर यही नरेंद्र, स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।


सीख:

विवेकानंद ने समाज और देश की उन्नति के लिए अपना जीवन इत्सर्ग कर दिया। हमें उनकी तरह समाज और देश के लिए कुछ जरूर करना चाहिए।


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