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सादगी का महत्व (न्याय मूर्ति रानाडे )

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जीवन में सादगी का तात्पर्य है कि हमारा खान पान रहन सहन सभी कुछ साधारण हो. हमारी आवश्यकताऐ सीमित हो. हम आवश्यकता से अधिक धन संग्रह कभी ना करें. हम कम वस्तुओं मे जीने की कला सीखें, ताकि सदा एक जैसा जीवन बीते. न  सुख में इतराye बावजूद हमारे विचार ऊंचे हो। हमे सदा दूसरों के प्रति स्नेह और सदभाव रखना,उनकी भालाई व साहायता करना तथा निर्भिमानी होना चाहिए।सदा जीवन उच्च विचार के पालन से मनुष्य अपने साथ समाज को भी सुखी रखता है। सदा जीवन, उच्च विचार जीवन जीने की सर्वोत्तम विधी है। संसार में जितने भी महापुरुष हुए है, उनका रहन सहन एकदम साधारण रहा। उन्होंने सांसारिक सुखों से स्वयं को सदैव दूर रखा। हमारे महापुरुषों में से महादेव गोविंद रानाडे एक है।बात उन दिनों की है जब वे विद्यार्थी थे। उनके मकान के ठीक आगे एक अमीर स्त्री रहती थी। उसने सुख काल में खूब मौज किया और धन की बर्बादी भी की। कुछ दिन बाद वह गरीब हो गई। उसे खूब कष्ट होने लगा।फलत: वह रोज अपने आप को धिक्कारती और स्वयं पर क्रोध करती। वह खीझकर कर कहती   "स्वादिष्ट पदार्थ खाते खाते जीभ की आदत बिगड़ गई है,अब तो सुखी रोटी भी नहीं मिलती। हाय! मैं

अपनी वैल्यू कैसे बढ़ाएं

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                         अपनी वैल्यू कैसे बढ़ाएं                                      👇             1.👉अगर आप किसी इंसान को बार बार मैसेज करते हैं और वो रिप्लाई नहीं देता तो मत करो, सब के सब मतलबी हैं उन्हें मैसेज करके सर पर मत बैठाओ। 2.आपका जिस काम में मन लगता उसको करें। लोगों से मत डरो कि वो क्या कहेंगे। ये वही लोग हैं जो आपको बाद में कहेंगे कि हमें पहले से पता था ये कुछ बड़ा करेगा। 3.ना कहने की आदत डाल लें। आप किसी के कहने से कहीं भी चल देते तो ये आदत आपकी Value खत्म कर देगी, लोग आपको निठल्ले समझेंगे इसलिए अपने काम पर ध्यान दो । 4.ज़रूरत से ज़्यादा मत बोलें। जितना जरूरी हो उतना ही बोलें और दूसरों को सुने। ऐसे बनो कि लोग आपकी आवाज सुनने के लिए तरस जाएं 5.कभी किसी को बेवजह सलाह मत दें। किसी को चाहे आप कितना भी अच्छा समझा लो लेकिन वो अपनी मर्जी से ही करता है क्योंकि आजकल ज्ञान सभी के पास मौजूद है.        

Quotes

   समय इंसान को सफल नहीं बनाता         बल्कि समय का सही इस्तेमाल             इंसान को सफल बनाता है 

जीवन में खुश कैसे रहें

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     How to be happy in life                     ( जीवन में खुश कैसे रहें)                  पहले ये समझना आवश्यक है कि ख़ुशी आखिर है क्या ? हर इंसान खुश रहना चाहता है। वह चाहता है की उसकी ख़ुशी के लम्हे कभी भी ख़त्म न हों। ऐसा कोई पल न आये जब उससे यह ख़ुशी दूर जाये। ऐसा इसीलिए है क्योंकि हम खुशियों को कुछ निश्चित संसाधनों से मापते हैं और जब उनकी पूर्ति हो जाती है तो हमारे लिए खुशियों के मायने बदल जाते हैं और हम अपनी ख़ुशी को किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति पर केंद्रित कर देते हैं। परन्तु कम ही लोग यह जानते हैं की ख़ुशी न तो कोई ऐसी चीज है जो हमारे पास आएगी और न ही कोई ऐसी चीज है की हमसे दूर जाएगी। 🔻 ख़ुशी किस चीज से मिलती है ? यदि चीजों का मिलना ही ख़ुशी होती तो जिनके पास सब कुछ है वो सब लोग खुश होते और कोई भी ख़ुशी के बारे में बात ही नहीं करता। जब हम यह सोचते हैं की उस चीज को लेने के बाद हम खुश हो जायेंगे तो उस चीज के हमारे पास आ जाने के बाद हम थोड़ी देर तक ही खुश रह पाते हैं और फिर दूसरी चीज के प्रति हमारा मोह बढ़ जाता है और हम उसमे अपनी खुशियां ढूंढने लग जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ की उस चीज में

सत्कर्म करें, अहंकार नहीं

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          एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे. रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु: एक जिज्ञासा है मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ? श्री कृष्ण ने कहा: अर्जुन, तुम मुझसे बिना किसी हिचक, कुछ भी पूछ सकते हो। तब अर्जुन ने कहा: कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ, परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं? यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले: कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा। श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया। इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो। अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही यह काम करने के लिए चल दिया। उसने सभी गाँव वालों को बुलाया। उनसे कहा कि वह लोग पंक्ति बना लें अब मैं आपको सोना बाटूंगा और सोना बांटना शुरू कर दिया। गाँव वालों ने अर्जुन की खूब जय जयकार करनी शुरू कर दी। अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए।  लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे। उ

सादगी का महत्व

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सादगी जीवन में सादगी का तात्पर्य है कि हमारा खान पान व रहन सहन सभी कुछ साधारण हो ।हमारी आवस्यकताएं एकदम सीमित हो।हम आवश्यकता से अधिक धन संग्रह कभी न करें। हम कम वस्तुओं में जीने की कला सीखे,ताकि सदा एक जैसा जीवन बीते । ना सुख में  इतराए ना दुख में घबराए। लेकिन सादगी के बावजूद हमारे विचार ऊंचे हो। हमें सदा दूसरों के प्रति स्नेह और सद्भाव रखना,उनकी भलाई व सहायता करना तथा नर भिमानी होना चाहिए। सादा जीवन उच्च विचार के पालन से मनुष्य अपने साथ समाज को भी सुखी रखता है। सादा जीवन उच्च विचार जीवन जीने की सर्वोत्तम विधि है।          संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनका रहन-सहन एकदम साधारण रहा है। उन्होंने सांसारिक सुखों से स्वयं को सदैव दूर रखा है। हमारे महापुरुषों में से महादेव गोविंद रानाडे एक है । बात उन दिनों की है जब वह विद्यार्थी थे। उनके मकान के ठीक सामने एक अमीर स्त्री रहती थी। उसने सुख काल में खूब मौज किया और धन की बर्बादी भी की। कुछ दिनों में वह करीब हो गई। उसे खूब कष्ट होने लगा। फलत: वाह रोज अपने आप को धिक्कारती  और स्वयं पर क्रोध करती। वह खीझकर कहती - "स्वादिष्ट पदार्थ खाते

विवेकानंद का बचपन

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स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। बालक नरेंद्र खेल खेल में अपने साथियों के साथ ध्यान लगाने बैठ जाते थे। नरेंद्र के साथ अन्य सभी मित्रों ने आसन लगाकर अपनी अपनी आंखें बंद कर ली। एक मित्र ने कुछ समय बाद ही अपनी आंखें खोल दी।उसने देखा कि एक भयानक सांप रेंगता हुआ उनकी ओर चला आ रहा है । वह जोर से चीख पड़ा     सांप सांप ! उसका चिखना था कि सभी लड़कों ने अपनी अपनी आंखें खोल दी। सांप देखा तो भाग गए पर नरेंद्र अपने स्थान से हिले तक नहीं। एक लड़के ने दौड़कर नरेंद्र के माता-पिता को खबर दी। नरेंद्र के माता-पिता ने जाकर देखा कि उनका बेटा अपनी जगह पर ध्यान मग्न है और सांप उसके सामने फन फैलाए हुए हैं।  नरेंद्र के माता-पिता यह देखकर भयभीत हो गए। उन्हें चिंता होने लगी कि यदि वे सांप को छेड़ते हैं तो कहीं सांप क्रोधित होकर नरेंद्र को काट न ले। नरेंद्र के माता-पिता मन ही मन भगवान से नरेंद्र के लिए प्रार्थना करने लगे।  ईश्वर ने उनकी प्रार्थना सुन ली और सांप वहां से चला गया ।ऐसी एकाग्रता और आत्मबल वाले महान बालक थे नरेंद्र,जो आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से अमर हो गए।  बालक नरेंद्र जब छुआछूत और